मिठास पाठ्य पुस्तक कक्षा 5 पाठ - 4 दादी का चश्मा

कक्षा - 5 
विषय: हिंदी
पुस्तक का नाम: मिठास
पाठ संख्या: 4
पाठ का नाम - दादी का चश्मा 

दादी का चश्मा


पात्र - एकता, दादी माँ, एकता की सहेली मालती

दृश्य ।

(दादीजी चश्मा लगाकर अखवार पढ़ते हुए और एकता उनका चश्मा लेने की कोशिश करते हुए)

एकता - ये क्या दादी.. यह चश्मा कहाँ से ले आईं? अरे वाह। कितना सुंदर दिख रहा है यह। मुझे दो न।

दादीजी - रुक...रुक... रुक। ऐसे खींचेगी तो इसकी कमानी टूट जाएगी। और, अगर नीचे गिर गया तो शीशा भी टूट जाएगा।

एकता -दादी प्लीज, दीजिए ना.. जरा मैं भी चश्मा पहनकर देखूँ कैसा लगता है। प्लीज दादी... चश्मा दे दो न।

दादीजी - नहीं, बच्चे चश्मा नहीं पहनते हैं। आँखें खराब हो जाएँगी।

एकता - तो फिर आपने क्यों पहना है?

दादीजी - मैं कोई बच्ची हूँ क्या? बाल पक गए हैं, बूढ़ी हो गई हूँ। आँखें कमजोर हो गई हैं। इसलिए डॉक्टर को दिखाकर ये चश्मा ले आई हूँ।

एकता - आपकी बड़ी-बड़ी आँखें इतनी अच्छी तो दिख रही हैं और आप झूठ-मूठ में कह रही हैं कि आँखें कमजोर हो गई हैं।

दादोजी - बिटिया, आँखों की कमजोरी कोई बाहर से थोड़े न दिखती है।

एकता - फिर आपको कैसे पता चला कि आपकी आँखें कमजोर हो गई हैं?

दादोजी - आँखें अंदर से कमजोर होती हैं। आँखें कमजोर होती हैं तो सारी चीजें धुँधली दिखाई देने लगती हैं। अखबार या किताब पढ़ने पर आँखो में दर्द होने लगता है। देर तक पढ़ो तो सिर में भी दर्द होने लगता है। पिछले कई दिनों से मुझे अखबार पढ़ने में परेशानी हो रही थी तो मैं समझ गई कि मेरी आँखें कमजोर हो रही हैं। डॉक्टर के पास गई तो उसने आँखों की जाँच करके चश्मा दे दिया।

एकता - लेकिन आपकी आँखें आखिर कमजोर हुई क्यों?

दादीजी - बुढ़ापे में अधिकतर लोगों की आँखें कमजोर हो जाती हैं। इसलिए, सामान्यतः बूढ़े लोगों को चश्मा पहनना पड़ता है।

एकता - आपने कहा कि बूढ़े लोग चश्मा पहनते हैं, लेकिन मेरी गणित की टीचर तो बूढ़ी नहीं हैं। फिर वे क्यों चश्मा पहनती हैं?

दादीजी - चश्मा किसी भी उम्र में लग सकता है। आँखों के अंदर का आकार बिगड़ जाने पर चीजें धुँधली दिखती हैं। इसलिए, चश्मे की जरूरत होती है। किसी-किसी परिवार में तो हर किसी को चश्मा लग जाता है। बच्चों को भी। आँखों में दूसरी परेशानियाँ भी हो सकती हैं, जैसे आँखें सूख जाना, आँखें थक जाना, आदि।

बहुत ज्यादा टी.वी. देखने, देर तक मोबाइल और कंप्यूटर पर काम करने या शरीर के अंदर विटामिन 'ए' की कमी होने के कारण कम उम्र में भी आँखों में ये परेशानियाँ हो सकती है।

एकता - (भोलेपन से) अच्छा तो अब समझ में आया कि पढ़ते समय मेरी आँखों और सिर में दर्द क्यों होने लगता है। दादी, ऐसा लगता है मेरी भी आँखें कमजोर हो गई हैं। मुझे भी सारी चीजें धुँधली-धुँधली-सी दिखती हैं।

दादीजी - (हँसते हुए) इसलिए तो तुमसे कहती हूँ कि रोज सुबह-शाम दूध पिया करो और हरी सब्जियाँ खाया करो। गाजर, टमाटर, पपीता और संतरा खाया करो। इन सब में विटामिन 'ए' होता है, लेकिन तुम्हें तो दूध, फल और सब्जियाँ खाना अच्छा ही नहीं लगता।

एकता - नहीं दादी, अब मुझे भी चश्मा पहनना पड़ेगा। ऐसा है कि कल से जब मैं स्कूल जाऊँगी तब आप अपना चश्मा मुझे दे देना। मैं स्कूल से लौटकर वापस कर दूँगी। आप अखबार शाम को पढ़ लेना।

दादीजी - नहीं, तुम्हें चश्मा-वश्मा नहीं मिलेगा। तुम आज से ही रोज सुबह-शाम दूध पीना शुरू कर दो। फल और हरी सब्जी खाना शुरू कर दो। बो

थोड़े अंकुरित चने भी खाया करो। तुम्हारी आँखें एकदम ठीक हो जाएँगी। समझी ? 

दृश्य 2

(मालती और एकता स्कूल आने के लिए तैयार, एकता स्टूल पर चढ़ी हुई)

मालती - एकता तुम स्टूल पर चढ़कर क्या कर रही हो?

एकता - दादी इस अलमारी में अपना चश्मा छिपाकर रखती हैं। माँगने पर देती नहीं। आज मैं लेकर ही रहूँगी।

मालती - पर, ये तो चोरी हुई।

एकता - दादी की चीज लेने में कोई चोरी नहीं। मिल गया चश्मा। ले पकड़, इसे मेरे बस्ते में छिपाकर रख दे।

मालती- तुम इसका क्या करोगी?

एकता - कक्षा में चश्मा लगाकर अपनी सभी सहेलियों पर रोब जमाऊँगी। (बातें करते-करते वे स्कूल के पास पहुँच गईं।)

दृश्य 3

(स्कूल के गेट के पास)

एकता- रुको, पहले चश्मा तो लगाने दो। (उसने बस्ते से चश्मा निकाला और अपनी आँखों पर लगा लिया।)

मालती ये तो कितना बड़ा है। तुम्हारी नाक पर रुक भी नहीं रहा।

एकता- तुम चिंता न करो। मैं एक हाथ से इसे पकड़कर रखती हूँ।

मालती - वैसे चश्मा तुम पर अच्छा लग रहा है।

एकता - ये जमीन ऊँची-नीची क्यों हो रही है

मालती - धीरे-धीरे चल। पहली बार चश्मा लगाया है।

एकता - मैं जमीन पर पैर रखती हूँ तो मेरा पैर नीचे क्यों चला जाता है?

मालती - सँभलकर। (एकता जोर से मुँह के बल धड़ाम से गिरती है। पकड़ो मेरा हाथ और उठो।

एकला - (खड़ी होते हुए) मेरा बस्ता? मेरा चश्मा ?

अरे। मेरे तो कपड़े भी गंदे हो गए।

मालती - ओह। तुम्हारे घुटने भी छिल गए।

एकता - अच्छा हुआ चश्मा नहीं टूटा।

मालती - शुक्र करो कि तुम्हें इस हाल में किसी ने देखा नहीं।

एकता - हाँ बाबा, कोई देख लेता तो सारा रोब निकल जाता।

(कान पकड़कर) अब कभी दूसरों का चश्मा नहीं पहनूँगी।


अखिलेश कुमार श्रीवास्तव 'चमन'

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Milan Tomic

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