कक्षा - 4
विषय: हिंदी
पुस्तक का नाम: मिठास
पाठ संख्या: 3
पाठ का नाम - विवेकानंद की सीख
स्वामी विवेकानंद ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने विश्व में भारत का नाम रोशन किया। उनके जीवन और विचारों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। आज हम स्वामी विवेकानंद के जीवन की एक घटना पढ़ेंगे।
एक दिन विवेकानंद अपने पीतल के लोटे को माँज रहे थे। तभी उनके एक शिष्य ने उनसे पूछा, "गुरुजी, क्या आप इस लोटे को रोज सुबह उठकर मौजते हैं?"
विवेकानंद ने उत्तर दिया, "हाँ, मैं इसमें पीने का पानी रखता हूँ। सुबह ताजा पानी भरने से पहले एक बार इसे माँज लेता हूँ।"
यह सुनकर शिष्य बोला, "गुरुजी, आप इसमें केवल पानी ही भरते हैं। यह तो साफ ही रहता है। फिर इसे रोज-रोज क्यों माँजते हैं?"
विवेकानंद बोले, "माँजने से लोटा चमक जाता है और पहले से भी अधिक नया-सा लगने लगता है।"
"अच्छा, पर इसे रोज-रोज माँजने में आपका समय भी तो लगता है," शिष्य कुछ सोचते हुए बोला।
तब विवेकानंद ने मुसकराते हुए पूछा, "तो तुम्हारे विचार में इसे कब माँजना चाहिए?"
शिष्य झट से बोला, "कभी-कभी। जब यह लोटा ज्यादा गंदा लगे तब इसको मौज लेना चाहिए। वरना धोकर ही इसमें पानी भर लेना चाहिए।"
शिष्य की ओर देखते हुए विवेकानंद बोले, "मुझे लगता है तुम भी ठीक कहते हो। चलो, इसे धोकर ही पानी भर लेता हूँ। जब गंदा लगेगा तब इसे माँज लूँगा। इसे माँजने में लगनेवाला समय भी बचेगा।"
फिर एक सप्ताह के बाद विवेकानंद ने उसी शिष्य को बुलाया और अपना लोटा देते हुए कहा, "मैंने एक सप्ताह से इसे माँजा नहीं है। इसकी चमक फीकी पड़ने लगी है। आज तुम इस लोटे को माँजकर चमका दो।"
शिष्य लोटा लेकर चला गया और कुछ समय बाद लौटकर आया। तब विवेकानंद ने लोटे को देखकर पूछा, "क्या तुमने लोटा माँजा नहीं ?"
शिष्य धीरे से बोला, "माँजा था, पर लोटा पूरी तरह साफ नहीं हो पाया है।"
"और इसे मौजने में तुम्हें कितनी मेहनत करनी पड़ी?" विवेकानंद ने उससे पूछा।
"बहुत अधिक। पहले मैंने इसे केवल पानी से धोकर साफ किया। फिर मैंने इसे जूने से कई बार माँजकर चमकाने की कोशिश की। लेकिन, बहुत मुश्किल से यह इतना ही चमक पाया," शिष्य थोड़ा उदास होकर बोला।
"और समय कितना लगा?" विवेकानंद ने फिर पूछा।
शिष्य ने बताया, "बहुत।"
"इतनी मेहनत करके और इतना समय लगाकर क्या इसकी पहले वाली चमक वापस ला पाए?" विवेकानंद कहते हुए मुसकराए।
शिष्य ने अत्तर दिया, "बिलकुल नहीं।"
फिर विवेकानंद में प्यार से शिष्य से पूछा, "अहातेज मौजे जानेवाले लोरे और कई दिन बाद मौजे जानेवाले इस लोटे में तुम्हें क्या अंतर नजर आया ?*
शिष्य बोला, 'जब यह लोटा रोज गाँजा जाता था तब यहजार था और मौजने के बाद इसकी चमक और बढ़ जाती थी। और अब, जब इसे कई दिन तक माँजा नहीं गया तब इसकी चमक चली गई है। बहुत मौजने के बाद भी यह पहले जैसा चमकदार नहीं हो पाया है।"
तब विवेकानंद शिष्य के सिर पर हाथ रखकर बोले, "इससे सीख लो और इस सीख को जीवन में उतार लो। अगर किसी काम में निपुण होना चाहते हो, तो लोटे की तरह उसे रोज मौजना चाहिए। उसका रोज अध्याय करना चाहिए। जानते हो अगर अभ्यास नहीं करोगे, तो क्या होगा ?"
शिष्य बोला, "तो बिना माँजे लोटे की तरह चमक फीकी पड़ जाएगी। जो सीखा है सब भूल जाएंगे।"
"हाँ, और दोबारा याद करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और उसमें समय भी बहुत लगेगा। इसलिए रोज अभ्यास करो और सदा चमकते रहो," विवेकानंद ने समझाया।
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