कक्षा - 3
विषय: हिंदी
पुस्तक का नाम: अनुभूति
पाठ संख्या: 9
पाठ का नाम - नाशपाती के बीज
हम सभी इनसान हैं। हम सभी से कभी न कभी कोई न कोई गलती हो जाती है। अपनी गलतियों को न देखना व दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों को उजागर करना एक बहुत बड़ा दुर्गुण है।
बहुत समय पहले चीन में एक निर्धन आदमी रहता था। एक दिन वह बहुत भूखा था। उसने दुकान से एक नाशपाती चुरा ली। दुकानदार ने उसे पकड़ लिया और राजा के दरबार में ले गया। राजा के सामने पहुँचकर चोर ने कहा, "अगर आप मुझे माफ़ कर दें तो मैं आपको एक बहुमूल्य उपहार दूँगा।"
उस आदमी ने अपनी जेब से एक छोटा भूरे रंग का नाशपाती का बीज निकाला और बोला, "यह बीज जादुई है। इसे बो देने पर यह प्रतिदिन सोने का एक फल देगा।"
"ठीक है, तो इसे बो दो। कल जब सोने का फल मिल जाएगा तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगा।", राजा ने कहा।
आदमी ने बगीचे में एक गड्ढा खोदा पर बीज नहीं बोया। "तुमने बीज क्यों नहीं बोया?", राजा ने पूछा।
"इस जादुई बीज को मैं नहीं बो सकता। इसे वही बो सकता है, जिसने कभी चोरी न की हो, झूठ न बोला हो, किसों को धोखा न दिया हो। आप इस बीज को वो दीजिए।", चोर ने कहा।
"मैं राजा हूँ। मैं बीज नहीं बो सकता।", राजा गुस्से में भरकर बोले और मंत्री से बीज बोने को कहा।
"मुझे माफ कीजिए। मैं जो भी बोता हूँ, वह उगता नहीं है। मेरे बगीचे में मेरे बोए कोई पौधे नहीं उगे। सेनापति जी बो देंगे।", मंत्री ने जल्दी से जान बचाते हुए कहा।
सेनापति ने बहाना बनाते हुए मना कर दिया। इस तरह बारी-बारी से सभी दरबारियों ने कुछ न कुछ बहाना करके बीज बोने से मना कर दिया।
तब चोर बोला, "आप सब राज्य अधिकारी हैं, फिर भी बीज नहीं बो रहे। आपको पता है कि आप सभी ने कभी न कभी झूठ, धोखे या चोरी जैसा कोई न कोई काम अवश्य किया है। पर आप मुझ गरीब भूखे को इसलिए सजा देना चाहते हैं क्योंकि मैंने अपना पेट भरने के लिए एक नाशपाती चुराई है। क्या यही न्याय होना चाहिए?"
चोर की बातें सुनकर सबका सिर झुक गया। "तुम सही कहते हो। मैं तुम्हें माफ करता हूँ।" कहकर राजा ने चोर को जाने दिया।
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