चालाक खरगोश
एक जंगल में तालाब के पास हाथियों का झुंड रहता था। एक बार वर्षा न होने के कारण जंगल में सूखा पड़ गया। सूखा पड़ने के कारण तालाब भी सूखने लगा था।
तालाब को सूखते देखकर हाथियों को चिंता सताने लगी। उनके सरदार ने अपने साथियों से कहा- "मित्रों मैं सोचता हूं कि अब हमें इस जंगल को छोड़कर पड़ोस के जंगल में चलना चाहिए। वहां एक झील है, जिसका नाम चंद्रसर है। वह वर्षा न होने पर भी कभी सूखती नहीं है। इसलिए चलो हम सब वही चलते हैं।"
सभी हाथी सहमत हो गए। सात दिनों की यात्रा के बाद सभी हाथी चंद्रसर झील पहुंचे। झील पानी से भरी थी। उसके चारों ओर हरी घास थी। जमीन में बने बिलों में बहुत सारे खरगोश रहते थे।
हाथियों के झील पर रोज आने के कारण उनके पैरों ने खरगोशों के कई बिलों को रौंद दिया और बहुत से खरगोशों को कुचल डाला। झील के चारों ओर रहने वाले खरगोशों के लिए ये हाथी खतरा बन चुके थे। घबराए हुए खरगोशों ने उस स्थान को छोड़ने का निश्चय किया।
लेकिन लंबकर्ण नामक खरगोश उनकी इस बात से सहमत नहीं हुआ। उसने कहा - "मैं अपनी बुद्धि से इन हाथियों को भगा दूंगा।"
लंबकर्ण दो अन्य साथियों को लेकर हाथियों के सरदार से मिलने चल दिया। उन्हें देखकर हाथियों के सरदार ने सहज भाव से कहा - "कहो दोस्त! कैसे आना हुआ?"
लंबकर्ण बोला - "हम इस जंगल की खरगोश बिरादरी की ओर से आपकी सेवा में इसलिए हाजिर हुए हैं कि आप लोग जिस तालाब पर आते हैं उसके विषय में कुछ जानकारी दे दें।"
हाथियों का सरदार आश्चर्यचकित होकर बोला - "कैसी जानकारी? तुम क्या कहना चाहते हो?"
लंबकर्ण गंभीर स्वर में बोला - "दरअसल इस तालाब में हमारे देवता चांद रहते हैं।
यदि आप तालाब के जल को गंदा करेंगे तो हमारे देवता नाराज होकर सभी का सर्वनाश कर देंगे।"
"क्या तुम सत्य कह रहे हो, खरगोश? - हाथी ने कहा।
"महाराज, यदि आपको विश्वास नहीं है तो आज रात को स्वयं चांद देवता के दर्शन कर लेना। इससे आपको भी पुण्य मिलेगा।" लंबकर्ण ने हाथ जोड़कर कहा।
हाथी बोला - यदि ऐसी बात है तो आज रात को हम चंद्र देवता के दर्शन अवश्य करेंगे और यदि तुम्हारी बात झूठ निकली तो तुम्हें इसका दंड दिया जाएगा।
पूर्णिमा की रात थी। आकाश पर चांद पूरे रूप के साथ चमक रहा था। हाथियों का सरदार अपने साथियों के साथ चंद्र देवता के दर्शन के लिए आया।
झील में चांद के कांपते हुए प्रतिबिंब को दिखाते हुए लंबकर्ण ने कहा - देखो, चंद्र देवता तुम्हें देखकर गुस्से से कांप रहे हैं। अपना सिर झुका कर प्रतिज्ञा करो कि तुम इस झील पर दोबारा नहीं आओगे।
मूर्ख हाथी ने लंबकर्ण की बातों पर विश्वास कर लिया। उसने चांद को प्रणाम किया और अपने झुंड के साथ वहां से चला गया। उसके बाद लंबकर्ण और अन्य खरगोश खुशी-खुशी रहने लगे।
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