मन के भाव
शीर्षक- और कविता तैयार
एक विचार जो मन में कौंधा
हर्षित हुआ हृदय का पौधा
कुछ तो था जो बीज से फूटा
वीराने में कुछ बाहर निकला
इस विचार को लिखने में
उंगलियों की पोरों में
जो हलचल मची थी
से संजोकर रखने में
मेहनत जो भी लगती है
उसी मेहनत की है पूंजी
जो यह कविता दिखती है
जो यह कविता दिखती है।।
स्वरचित- गोविन्द पाण्डेय पिथौरागढ़, उत्तराखंड |
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बेटे के इक्कीसवें जन्मदिन पर एक मां की शुभकामनाएं ️
खुशियां मिले बेशुमार,
जीवन में खुशहाली छाई रहे!!!
बार बार यह दिन आए,
जब तक सूरज चांद रहे!!!
चलते रहना उस पथ पर,
जिस पथ पर सच्चाई रहे!!!
करना रोशन सदा जहां को,
कर्तव्यनिष्ठता बनी रहे!!!
अब तक पहचान थी मात-पिता से,
अब मात-पिता को पहचान तुमसे मिले!!!
है मां का यही आशीष तुम्हें,
मेरे इस आशीष पर प्रभु का आशीष सदा बना रहे!!!
️
मधु ठेनुआं
दिल्ली
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