हिंदी कविता
शीर्षक- पुराना ख़त
आज फिर से बारिस,मौसम कुछ खुशमानी लगता है।
हाथ में लगा एक कागज,मुझे पुराना कोई ख़त लगता है।
आज प्रसन्न मन कुछ हुआ है,पुष्प जीवन उपवन में खिला है
बहुत दिन बीते इंतज़ार में,आज फिर से कोई संदेश मिला है।।
ख़त का भी अपना वज़ूद-सलीका और जज्बात होते हैं।
जब भी दिख जाए यह पुराने ख्वाबों-संसार आबाद होते हैं।।
इस पुराने ख़त की ख़ुशबू और शब्दों का चयन बेमिशाल होता है
शब्दों में ही दिलो-कलेजा हाथ में दिख जाता है।।
यह भी अमानत ओ कमाई है जीवन के एक हिस्से की।
जितना हो बयाँ उससे ज्यादा छुपी होती हैं बातें इस किस्से की।।
स्वरचित- गोविन्द बल्लभ पाण्डेय,
पिथौरागढ़, उत्तराखण्ड
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