तीन लोक की परिक्रमा
एक बार नारद मुनि को शरारत सूझी तो वे भगवान श्री गणेश के पास पहुंचे और बोले, 'मार्ग में मुझे कार्तिकेय मिले थे। कहने लगे गणेश को कुछ नहीं आता बस बैठकर आराम से मोदक खाया करते हैं। उनसे भी सुस्त तो उनका वाहन है, जो उन्हें पीठ पर बैठाकर धीरे-धीरे इधर-उधर टहला करता है।" गणेश जी को अपने भाई से ऐसी आशा न थी। उन्हें भाई से ऐसी बातें सुनकर बहुत बुरा लगा। इससे भी अधिक बुरा तो यह लगा कि उन्होंने यह बातें स्वयं उनसे ना कह कर नारद जी से कही थी, फिर भी उन्होंने ना नारद जी से और ना ही भाई कार्तिकेय से कुछ कहा।
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गणेश जी को इस तरह शांत देखकर नारद जी को अच्छा न लगा। वे तो चाहते थे कि दोनों भाइयों में ज़रा झगड़ा हो। यहां अपनी दाल न गलती देख कार्तिकेय के पास गए और बोले, " भगवान! क्या बताऊं यहां आ रहा था तो मार्ग में आपके भाई गणेश जी मिल गए। वह आपके बारे में ना जाने क्यों ऐसी बातें बोलने लगे।" कार्तिकेय ने मुस्कुराते हुए पूछा, "कैसी बातें नारद मुनि, स्पष्ट कहिए। गणेश क्या बोल रहे थे मेरे बारे में?" नारद मुनि ने थोड़े संकोच का दिखावा करते हुए कहा, "प्रभु, वह यही कह रहे थे कि कार्तिकेय आजकल बड़े आलसी और सुस्त हो गए हैं। उनका गंदे पैरों वाला मोर भी उनकी तरह जब देखो ऊॅंघता ही रहता है।" नारद मुनि की बात सुनकर कार्तिकेय नाराज हो गए। उन्होंने नारद मुनि से कहा, " मैं हर बात में गणेश जी से श्रेष्ठ हूं। उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। वह चाहे तो कोई प्रतियोगिता करके देख ले।" नारद जी ने यह बात बढ़ा-चढ़ाकर गणेश से कह दी। गणेश जी ने उत्तर दिया, "यदि कार्तिकेय कोई प्रतियोगिता रखना चाहते हैं तो मैं सहर्ष तैयार हूं। मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है।
बढ़ते-बढ़ते बात इतनी बढ़ गई कि आखिर सब लोग भगवान शिव के स्थान कैलाश पर एकत्रित हुए। यह तय हुआ कि स्वयं को श्रेष्ठ प्रमाणित करने के लिए दोनों भाइयों को तीनों लोगों की परिक्रमा करनी होगी। कार्तिकेय झट से अपने मोर पर सवार हुए और तीनों लोगों की परिक्रमा करने चल दिए। गणेश ने सबसे पहले अपने माता-पिता की चरण वंदना की और उसके बाद सात बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके कार्तिकेय जी की प्रतीक्षा करने लगे। नारद मुनि ने जब यह पूछा कि आपने यह क्या किया ? तो गणेश जी ने उत्तर दिया, "मेरे लिए तो मेरे माता-पिता में ही तीनो लोक समाए हैं क्योंकि इन्हीं के कारण मैं इस संसार में हूं और तीनों लोकों को देखने और अनुभव करने में समर्थ हूं। सभी ने भगवान श्री गणेश की बुद्धिमत्ता और माता-पिता के प्रति अपार आदर भाव की प्रशंसा की। कार्तिकेय के आने पर गणेश जी को विजेता घोषित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने एक बार नहीं सात बार अपने माता-पिता के रूप में तीनों लोकों की परिक्रमा कर ली थी।
शिक्षा - हमें सदैव अपने माता-पिता का सम्मान करना चाहिए।
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