विलोम शब्दों का प्रयोग करते हुए दो मित्रों में संवाद
आदित्य - मित्र सौरभ! इस कोरोना काल में सब कैसा चल रहा है?
सौरभ - चल क्या रहा है, बस बीत रहा है। अंदर पड़े-पड़े पता ही नहीं चलता, बाहर तो जाना ही नहीं होता। कब दिन निकला कब रात हो गई, कुछ पता ही नहीं चलता।
आदित्य - सही कहते हो मित्र! यह कोरोनावायरस तो शत्रु ही बन गया है। सोचा था सरदी के जाते ही यह भी चला जाएगा पर यह तो गर्मी में भी सिर पर सवार है।
सौरभ - पर एक बात तो है। इस कोरोना ने घृणा को बुलाकर सबको प्रेम सिखा दिया है। गंदगी और सफाई में अंतर समझा दिया है।
आदित्य - इस कोरोना के अंत और आरंभ को लेकर सब झूठ लगता है कुछ सच नहीं लगता।
सौरभ - सुख में दुख का एहसास करा दिया है। मरण के सामने जीवन का मूल्य समझा दिया है।
आदित्य - उचित और अनुचित का ज्ञान करा दिया है।
अज्ञान को हटा दिया है।
सौरभ - बिल्कुल सही कहते हो मित्र! जीवन का असली मूल्य तो अभी समझ में आ रहा है। अब तक तो जैसे हम नासमझ बन कर ही जी रहे थे।
आदित्य - अब तो ऐसा लगता है कि इस समय से पहले सब सुख ही था दुख तो बस अभी आया है।
सौरभ - बिल्कुल ठीक कहा तुमने मित्र।
GRAMMAR | POEM | 10 LINES | MOTIVATIONAL | GK |
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