हिंदी कहानी - चतुर तेनालीराम का वनवास से बचाव
एक बार राजा कृष्णदेव तेनालीराम से बहुत अधिक नाराज थे। उन्होंने तेनाली से कहा, " मेरे देश से बाहर निकल जाओ और कभी भी दोबारा मुझे अपना चेहरा मत दिखाना।" तेनालीराम ने राजा की आज्ञा का पालन किया। तेनालीराम ने राजा को पाठ पढ़ाने के लिए एक योजना तैयार की। वह कहीं भी नहीं गए बल्कि उसी राज्य में रहने लगे। उन्होंने एक रक्षक से कहा कि वह राजा पर अपनी नजर रखें और जब राजा जंगल के लिए जाएँ तो उन्हें सूचित करें।
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तेनालीराम ने अपनी चतुराई तथा बुद्धिमत्ता का प्रयोग किया तथा जंगल की तरफ चल दिया। राजा ने एक आदमी को पेड़ की सबसे ऊंची शाखा पर चढ़ते हुए देखा। उसने देखा कि यह आदमी और कोई नहीं बल्कि तेनालीराम था। राजा कृष्णदेव उसे देखकर बहुत क्रोधित हुए और गुस्से में कहने लगे, " तुम अभी तक मेरे राज्य को छोड़कर नहीं गए हो। तुमने मेरे आदेश तथा सम्मान का पालन ना करने का साहस दिखाया है।" तेनालीराम बहुत चतुर आदमी थे। एकदम से ही वह राजा के सामने सिर झुका कर खड़े हो गए और कहने लगे, "मैं आपके राज्य से दूर जाने के लिए बहुत से स्थानों पर गया था परंतु मैं जिस स्थान पर गया, वहां पर मुझे यही सुनने को मिलता था कि यह जगह राजा कृष्णदेव के राज्य की सीमा के अंदर आती है। तब मैंने निर्णय लिया कि मैं पेड़ पर रहूँगा क्यूँकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं यहाँ रहूँ या कहीं और। "
राजा कृष्णदेव शांत हो गए तथा उन्होंने हँसना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, "तेनालीराम, तुम्हारी चतुराई तथा बुद्धिमत्ता में कोई भी तुमसे नहीं जीत सकता। तुम मेरे राज्य में वापस आ सकते हो तथा दरबार के मंत्री के रूप में अपना पद दोबारा से संभाल सकते हो। राजा कृष्णदेव ने उनकी पीठ थपथपाई तथा उन्हें अपने साथ दरबार में ले गया।
GRAMMAR | POEM | 10 LINES | MOTIVATIONAL | GK |
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