चुहिया का दूल्हा
ऋषिकेश के मुनि व आसकरण महाराज हर की पौड़ी से स्नान करके लौट रहे थे। उन्हें मार्ग में एक चुहिया दिखाई दी, जो भय से कांप रही थी। मुनि आसकरण महाराज ने उसे उठा लिया और अपने तप की शक्ति से उसे सुंदर बालिका बना दिया। आश्रम लौटकर उन्होंने उसे अपनी पत्नी को दे दिया। मुनि-पत्नी ने उसका नाम दीप्ति रखा। दोनों उसका लालन-पोषण करने लगे।
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दीप्ति विवाह योग्य हो गई तो मुनि-पत्नी ने उसका विवाह करने की इच्छा प्रकट की। मनीवर ने दीप्ति को बुलाकर कहा, "पुत्री! हम तुम्हारा विवाह करना चाहते हैं। तुम्हारा क्या विचार है?" दीप्ति ने अपनी सहमति दे दी।
मुनिवर आसकरण महाराज ने तप के बल से सूर्य को बुलाया।
सुंदर युवक के रूप में सूर्य आ गया। मुनिवर बोले, "पुत्री! यह सूर्य है। इस से विवाह कर लो।"
"पिताजी! इसमें बहुत गर्मी है। मैं इसे विवाह नहीं कर सकती।" दीप्ति ने कहा।
मुनिवर ने चांद को युवक के रूप में बुलाया। दीप्ति ने कहा, "पिताजी! यह तो घटता-बढ़ता रहता है। मैं इससे विवाह कैसे कर सकती हूं।"
तब मुनिवर ने पवन को बुलाया। दीप्ति ने पवन से विवाह करने से मना करते हुए कहा, "ये इतनी तेज गति से चलते हैं। मैं उनके साथ कैसे रहूंगी?"
तभी वहां से एक चूहा निकला। दीप्ति उसे देखती रह गई। उसने मुनिवर से कहा, "आप मुझे फिर से चुहिया बना दीजिए। मैं इस चूहे से विवाह करना चाहती हूं।"
मुनिवर आसकरण महाराज मुस्कुरा दिए। उन्होंने दीप्ति को चुहिया बनाकर उसका विवाह चूहे के साथ कर दिया।
शिक्षा - व्यक्ति समान स्तर के लोगों के साथ ही रहना पसंद करता है।
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