हिंदी दिवस पर एक कविता
साथियों जैसा कि आप जानते हैं १४ सितंबर 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
वाह! क्या बात है हिंदी..
हिमालय से निकली गंगा की धार,
पूरब से आती ठंडी बयार,
सागर में नदियों की कल-कल की ध्वनि,
गुंजायमान हो आकाश और अवनि
वाह! क्या बात है हिंदी...
साहित्य की गौरवशाली प्रथा...
वीरों के उत्सव की अमिट कथा,
नारी की निजता, सम्मान का एहसास,
अबला नहीं तू सबला है आज,
रानी झांसी की वीरता, दुर्गा की शक्ति
वाह! क्या बात है हिंदी....
रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक और उपमा,
उपमेय में उपमान की तुलना,
सुंदर, परिष्कृत, अलंकृत शैली
कहीं अन्योक्ति कहीं अतिशयोक्ति,
वाह! क्या बात है हिंदी...
कहीं रस हास्य, कहीं रस वीर,
कहीं रस रौद्र,कहीं गंभीर,
कहीं है छंद तो कहीं है विभक्ति,
कहीं समास, तो कहीं है संधि,
वाह! क्या बात है हिंदी...
घनानंद, मतिराम, पद्माकर की कविता,
मानो स्वच्छंद प्रवाहित हो सरिता,
तुलसी,कबीर, सूर के दोहे
नीतिपरक अमृत मन मोहे,
राम कृष्ण मीरा की भक्ति,
मानव जीवन में संचारित हो नवशक्ति
वाह! क्या बात है हिंदी....
नायिका का वियोग संयोग श्रृंगार,
प्रियतम से मान मनौवल, मनुहार
वो रूठना मनाना फिर स्वयं मान जाना,
स्नेह प्रेम के धागों में पिरोती मोती
वाह! क्या बात है हिंदी...
वाह! क्या बात है हिंदी...
शिक्षिका
बड़वाह (म. प्र.)
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