स्वदेश – कक्षा 8 हिंदी पाठ 1 का सारांश | गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' | मल्हार (NCERT)

विषय : हिंदी
कक्षा : 8
पाठ्यपुस्तक : मल्हार (NCERT)
पाठ- 1 स्वदेश

पाठ का सारांश:

यह कविता देशभक्ति से ओतप्रोत एक प्रेरणात्मक रचना है, जिसमें कवि ‘गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ ने स्वदेश के प्रति प्रेम, कर्तव्य और बलिदान की भावना को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।

कवि कहते हैं कि उस हृदय का कोई मूल्य नहीं जो अपने देश से प्रेम नहीं करता। ऐसा जीवन व्यर्थ है जिसमें देश के लिए उत्साह, जोश और त्याग की भावना नहीं है। जो व्यक्ति अपने राष्ट्र की प्रगति में सहभागी नहीं होता, वह संसार से कट जाता है और उसका जीवन निरर्थक हो जाता है। जो साहस नहीं करता, वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकता।

कवि आगे कहते हैं कि जिस व्यक्ति का जीवन समाज या जाति के उत्थान में सहायक नहीं होता, उसका उद्धार संभव नहीं। जिस हृदय में भावनाएँ नहीं हैं, वहाँ रस की धारा भी नहीं बह सकती।

स्वदेश उस भूमि को कहा गया है जहाँ हम जन्म लेते हैं, जहाँ के अन्न-जल से पलते-बढ़ते हैं, जहाँ माता-पिता, बंधु-बांधव रहते हैं और जहाँ हम स्वतंत्र नागरिक की तरह रहते हैं। इस धरती ने हमें अपार संपदाएँ, अमूल्य रत्न और ज्ञान-विज्ञान की धरोहरें दी हैं, जिससे पूरी दुनिया प्रभावित है। ऐसे स्वदेश के लिए जिनके मन में प्रेम नहीं है, वे धरती पर बोझ हैं।

अंत में कवि कहता है कि मृत्यु निश्चित है, लेकिन जब तक जीवन है, हमें अपने देश के लिए जीना चाहिए, अपने हाथों से कुछ कर दिखाना चाहिए। यदि हमारे पास साहस है तो हमें तोप-तलवार की आवश्यकता नहीं, हमारी आत्मशक्ति ही काफी है।


मुख्य भाव:
यह कविता देशभक्ति, कर्तव्यबोध, आत्मबल और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देती है। यह युवाओं को अपने देश के लिए निःस्वार्थ सेवा और त्याग के लिए प्रेरित करती है।



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Milan Tomic

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