विषय : हिंदी
कक्षा : 6
पाठ्यपुस्तक : भाषा सेतु
पाठ- 5 आ रही रवि की सवारी
आ रही रवि की सवारी
नव-किरण का रथ सज़ा है,
कलि-कुसुम से पथ सज़ा है,
बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक-धारी।
आ रही रवि की सवारी।
विहग, बंदी और चारण,
गा रहे हैं कीर्ति-गायन,
छोड़कर मैदान भागी,
तारकों की फौज़ सारी।
आ रही रवि की सवारी ।।
चाहता हूँ, उछलूँ विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह -
रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।
आ रही रवि की सवारी ।।
- हरिवंश राय 'बच्चन'
कविता का सारांश:
इस कविता में सूर्य के उदय को एक राजा की सवारी के रूप में दर्शाया गया है। कवि ने कल्पना की है कि जैसे कोई विजयी सम्राट आता है, वैसे ही सूरज सुबह रथ पर सवार होकर आता है। फूलों से रास्ता सजा होता है, पक्षी उसकी कीर्ति गाते हैं और तारों की फौज़ डर कर भाग जाती है। रात (अंधकार) सूरज के सामने हाथ फैलाए खड़ी रहती है। यह कविता आशा और प्रकाश का प्रतीक है।
💬 प्रमुख शब्दार्थ:
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रवि – सूर्य
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नव-किरण – नई सूरज की किरण
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कलि-कुसुम – फूल
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विहग – पक्षी
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चारण – प्रशंसा करने वाले कवि
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तारकों की फौज़ – तारे
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रात का राजा – अंधकार
🌈 भावार्थ:
हरिवंश राय बच्चन की यह कविता प्रतीकात्मक भाषा में लिखी गई है। इसमें यह संदेश छिपा है कि अंधकार (अज्ञान, डर, निराशा) कितनी भी ताक़तवर लगे, लेकिन उजाला (ज्ञान, आशा, ऊर्जा) आते ही वह समाप्त हो जाता है। सूरज की ‘सवारी’ एक बदलाव और नई शुरुआत का प्रतीक है।
मूल्य शिक्षा:
यह कविता हमें यह सिखाती है कि जब प्रकाश आता है, तो अंधकार को स्थान छोड़ना ही पड़ता है। यह जीवन में आशा और आत्मविश्वास की जीत का प्रतीक है।
✅ निष्कर्ष:
"आ रही रवि की सवारी" एक सुंदर, प्रेरणादायक और कलात्मक कविता है, जो भाषा की सौंदर्यता के साथ-साथ हमें जीवन का एक बड़ा संदेश भी देती है – अंधकार चाहे जितना भी गहरा क्यों न हो, प्रकाश आने पर वह टिक नहीं सकता।
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