चतुर तेनालीरामन
राजा कृष्णदेव राय अक्सर अपने दरबारियों की परीक्षा लेते रहते थे। दरबारी तेनाली रामन हमेशा अपनी बुद्धिमानी व हाजिरज़वाबी से उसमें खरे उतरते थे। आओ पढ़कर जाने कि इस बार तेनालीरामन ने किस तरह अपनी बुद्धिमानी दिखाइए।
राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबारियों की परीक्षा लेनी चाही। एक बार उन्होंने तेनाली रामन सहित सभी दरबारियों को दस-दस अशर्फियां देकर कहा, "यह अशर्फियां आपकी हैं। इन्हें आप अपने ऊपर ही खर्च करें, मगर हर एक अशर्फी हमारा मुंह देखकर खर्च की जाए।"
सभी दरबारी अशर्फियां पाकर बहुत खुश हुए। अपनी अपनी अशर्फ़ियों से भरी थैलियां लेकर वे चले गए। मगर बाज़ार में जाकर जैसे ही उन्होंने कुछ सामान खरीदना चाहा, वैसे ही परेशान हो गए।
परेशानी यह थी कि अशर्फी खर्च करने से पहले महाराज का मुंह कैसे देखें? सभी दरबारियों की यही स्थिति थी। वह बेहद परेशान हो उठे। जो काम जितना आसान था, अब उतना ही टेढ़ा लग रहा था। क्या करें, क्या ना करें, इसी उलझन में एक सप्ताह बीत गया।
सभी दरबारी महाराज के पास पहुंचे। महाराज ने पूछा, "किसने क्या-क्या खरीदा?"
"क्षमा करें महाराज, हम कुछ भी नहीं खरीद पाए। खरीदते भी कैसे? आप की शर्त ही ऐसी थी। बाजार में हम आपके दर्शन कैसे करते? इसलिए कुछ भी नहीं खरीद सके।" सभी दरबारियों ने कहा।
तभी तेनाली रामन वहां पहुंचे। ऊपर से नीचे तक एकदम सजे धजे। नए कपड़े, नई पगड़ी, गले में मोतियों की माला, सब कुछ एकदम नया। राजा ने पूछा, "तेनाली! तुमने क्या खरीदा?"
"महाराज, आप स्वयं ही देख रहे हैं। ऊपर से नीचे तक सब नया है।" तेनाली रामन ने मुस्कुराते हुए कहा। राजा कृष्णदेव क्रोधित होकर बोले, "इसका मतलब है कि तुमने हमारी आज्ञा का उल्लंघन किया है।"
दरबार में बैठे तेनालीरामन के दरबारी शत्रु यह सुनकर बहुत खुश हुए। उन्हें लगा आज तो तेनाली फंस गया। आज उसे अवश्य सजा मिलेगी। मगर तेनालीरामन तो थे ही सबसे बुद्धिमान। वे मुस्कुराते रहे।
इससे पहले कि राजा कृष्णदेव कुछ और कहते, वे बोले, "बिल्कुल नहीं महाराज! मैंने आपकी आज्ञा का कोई उल्लंघन नहीं किया है। मैंने अपनी प्रत्येक अशर्फी आपका पावन मुख देखकर ही खर्च की है।"
राजा ने आश्चर्य से पूछा, "मगर कैसे? हम तो राज महल में थे।"
तेनालीराम ने हाथ जोड़कर कहा, "महाराज, आप भूल रहे हैं कि प्रत्येक अशर्फी पर आपका चित्र अंकित है। मैंने उसे देख-देख कर ही अशर्फियां खर्च की हैं।
"वाह! वाह! बहुत खूब" , राजा कृष्णदेव ने तेनालीरामन की दिल खोलकर प्रशंसा की। अन्य सभी दरबारी तेनालीराम की चतुराई देखकर हक्के-बक्के रह गए।
GRAMMAR | POEM | 10 LINES | MOTIVATIONAL | GK |
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