दो दीप (लाला जगदलपुरी)
पाठ परिचय - जिस प्रकार सूरज की रोशनी संसार को रोशन करती है, उसी प्रकार शिक्षारूपी दीपक हमारे जीवन को सही दिशा देता है। इसलिए कवि ने सूरज और शिक्षा दोनों को दीप कहा है।
दो दीप
बिना तेल का, बिन बाती का,
दिनभर एक दीया जलता है।
और दीप जलने से पहले,
पश्चिम में जाकर ढलता है।
नभमंडल का सूरज है वह,
कण-कण को उज्ज्वल करता है।
ऊँच-नीच का भेद मिटाकर,
अंधकार सबका हरता है।
चमकीली किरणों से अपनी,
नित नया सवेरा लाता है।
उसकी चमकीली किरणों से,
तन, मन, जीवन का नाता है।
कमल पोखरों में हँसते हैं,
मन में फूले नहीं समाते ।
किरणों से नव जीवन पाकर,
पंछी नाच-नाचकर गाते।
एक दीप जलता है ऐसा,
भारत मां के आंगन में।
जिसके आगे नतमस्तक है,
ढलता सूरज नील गगन में।
यह शिक्षा का एक दीप है,
जो दिन रात जला करता है।
ज्ञानदीप है जो समाज के,
घट-घट में प्रकाश भरता है।
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