शिक्षाप्रद कहानी -बुद्धि क्या करती है ?
महाराजा भोज के दरबार में विद्वानों का सदा आदर किया जाता था। एक बार वे मंत्रियों सहित राजदरबार में उपस्थित थे। दूद्वारपाल ने अंदर आकर अभिवादन किया और बोला, "महाराज, एक बालक आपसे मिलना चाहता है।" राजा ने द्वारपाल से उस बालक को बुलाने के लिए कहा। राजा भोज उसे देखकर मुसकराने लगे।
उन्होंने बड़े प्यार से उस बालक से पूछा, "कुमार, क्या चाहते हो?" बालक ने गंभीर स्वर में कहा, "मैं अपने तीन प्रश्नों का उत्तर चाहता हूँ। आशा है मुझे अपने प्रश्नों का उत्तर अवश्य मिलेगा।" राजा को उस बालक के प्रश्नों को जानने की अत्यंत जिज्ञासा हुई। उन्होंने उसे उत्साहित करते हुएकहा, "तुम निश्चित होकर अपने प्रश्न पूछ सकते हो।" बालक ने मुसकराते हुए अपना पहला प्रश्न पूछा, "बुद्धि कहाँ रहती है?''
राजा व मंत्रियों को इस प्रश्न का उत्तर नहीं सूझा राजा ने महामंत्री से इसका उत्तर देने को कहा। महामंत्री ने प्रश्न का उत्तर देने के लिए एक दिन का समय माँगा। राजा ने बालक से अपने अन्य दो प्रश्न करने को कहा। राजा की बात सुन बालक ने कहा, "क्षमा करें महाराज, मैं अपने पहले प्रश्न का उत्तर जाने बिना अगला प्रश्न नहीं करूंगा।" राजा ने बालक को दूसरे दिन अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए बुलाया। बालक के लिए अतिथिगृह में ठहराने का प्रबंध किया गया।
महामंत्री को समझ में नहीं आ रहा था कि बालक इस प्रश्न का क्या उत्तर चाहता है? वह रात को अतिथिगृह में उस बालक के पास गया और प्रश्न का उत्तर पूछा। बालक ने इस अवसर का लाभ उठाना चाहा। उसने प्रश्न का उत्तर बताने के लिए एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ माँगीं। महामंत्री ने सहर्ष एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ देकर प्रश्न का उत्तर जान लिया। दूसरे दिन वह बालक अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आया। राजा ने महामंत्री को प्रश्न का उत्तर बताने के लिए कहा। महामंत्री ने प्रसन्नतापूर्वक कहा, "बुद्धि श्रेष्ठ पुरुषों में रहती है।"
बालक ने इस उत्तर पर अपनी स्वीकृति दे दी। उसने उत्साहपूर्वक दूसरा प्रश्न पूछा, "बुद्धि क्या खाती है?" उसका प्रश्न सुनकर सब दरबारी हँस पड़े। बालक कुछ मायूस हो गया। राजा ने संकेत से सब दरबारियों को उसकी हँसी उड़ाने के लिए मना किया और महामंत्री से इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कहा। इस बार भी महामंत्री ने उत्तर देने के लिए एक दिन का समय माँगा। अब की बार राजा ने बालक से अन्य प्रश्न करने को नहीं कहा। राजा ने बालक को अगले दिन उत्तर जानने के लिए आने को कहा।
इस बार भी महामंत्री ने अतिथिगृह में उसे बालक से प्रश्न का उत्तर बताने का अनुरोध किया। बालक ने पुनः एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ लेकर उत्तर बता दिया। अगले दिन राजदरबार में काफ़ी भीड़ थी। बालक ने राजा की अनुमति से अपना प्रश्न दोहराया।
महामंत्री ने तत्काल उत्तर दिया, "बुद्धि गम खाती है।" बालक ने इस उत्तर को भी स्वीकार कर लिया। चालक राजा अपना और अंतिम प्रश्न पूछने की अनुमति माँगी। ने बालक को प्रश्न पूछने की अनुमति दी।
बालक ने तीसरा प्रश्न पूछा "बुद्धि करती मंत्रियों ने अपनी बुद्धि बालक ने
राजा भोजन महामंत्री उत्तर के कहा। महामंत्री पहले की तरह इस भी अगले
प्रश्न का उत्तर देने के लिए समय माँगा। बालक इस भी सुझाव स्वीकार कर लिया। हजार स्वर्ण मुद्राएँ लेकर बालक के पास उत्तर के लिए गया. परंतु अब की बालक किसी भी मूल्य प्रश्न का बताने को तैयार नहीं हुआ। महामंत्री निराश होकर लौट गया।
अगले दिन वालक आकर राजा भोज व मंत्रियों को अभिवादन करते हुए अप प्रश्न दोहराया। सभी सभासद मीन राजा सोचकर दिया, "बुद्धि करती है।" परंतु बार बालक ने महामंत्री उत्तर अस्वीकार दिया। राजा कहा, "बालक, हम तुमसे ही इस प्रश्न उत्तर सुनना चाहते हैं।
बालक हंसा और चारों ओर देखकर बोला, "क्या आप सब मानते हैं कि मैं सबसे अधिक बुद्धिमान ह?" राजा ने कहा, "निस्संदेह तुम हम सबसे अधिक बुद्धिमान हो।"
बालक ने विनम्रतापूर्वक राजा से कहा, "फिर आप कुछ देर के लिए राजसिंहासन छोड़ दीजिए। मैं डबे आसन पर बैठकर ही उत्तर दूँगा।" इस पर सभी सभासद क्रोध में आ गए। राजा ने सभी को शांत करते हुए बालक की बात मान ली और राजसिंहासन से नीचे उतर आए। राजा ने बालक का हाथ पकड़ उसे राजसिहासन पर बैठा दिया। बालक कभी राजा को कभी महामंत्री को कभी अन्य सभासदों को मुसकराकर देखता रहा, पर मुँह से बोला कुछ नहीं।।
महामंत्री ने ईष्यवश उस बालक से कहा, "बालक, अब तुम प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं देते?" बालक ने हँसकर उत्तर दिया, "मैंने तो अपने प्रश्न का उत्तर दे दिया है। लगता है, राजा भोज के दरबार में कोई इस बालक की भाषा नहीं समझता।"
यह सुनकर राजा भोज और मंत्रियों की बुद्धि चकरा गई। राजा ने बालक से प्रश्न का उत्तर समझाने का अनुरोध किया। बालक ने विनम्र स्वर में कहा, "बुद्धि एक निर्धन को राजसिंहासन पर बैठा सकती है और राजा को राजसिंहासन से नीचे उतार सकती है।"
इतना कहकर वह राजसिंहासन से उतर गया तथा राजा भोज के चरणों पर अपना मस्तक रख दिया।
राजा भोज ने उसे उठाकर गले से लगा लिया।
महाराजा भोज ने महामंत्री को राज्य के सभी निर्धन बालकों की शिक्षा का प्रबंध राज्य की ओर से करने का आदेश दिया। पूरा दरबार राजा भोज की जय-जयकार से गूंज उठा। बालक को बुद्धिमानी से राज्य की ओर से सभी निर्धन बालकों की शिक्षा का प्रबंध हो गया था।
सीख - बुद्धि राजा को निर्धन और निर्धन को राजा बना सकती है।
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