शिक्षाप्रद कहानी - मुट्ठी भर मेंढक
बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में एक सज्जन और ईमानदार व्यक्ति रहता था। गाँव के सभी लोग उसकी बहुत प्रशंसा करते थे। सभी लोगों का प्रशंसा पात्र होने के कारण वह बहुत प्रसन्न था।
एक दिन की बात है काम से लौटते हुए उसे अपने आगे कुछ दूरी पर चलते हुए लोगों की बातें सुनाई पड़ी। वे उसके बारे में ही बातें कर रहे थे। वह जानता था कि गाँव के लोग उसकी प्रशंसा के पुल बांधा करते हैं। वह अपनी प्रशंसा सुनने के उत्साह को रोक नहीं सका और दबे पाँव उनके पीछे चलते हुए उनकी बातें सुनने लगा।
लेकिन जब उसने उनकी बातें सुनी तो उदास हो गया, क्योंकि वे सभी लोग उसकी बुराई कर रहे थे। कोई उसे घमंडी बता रहा था तो कोई दिखावे बाज।
उन बातों ने उसके मन को झकझोर कर रख दिया। उसे महसूस होने लगा कि अब तक वह भुलावे में था कि सभी लोग उसकी प्रशंसा करते हैं जबकि वास्तविकता इसके उलट है।
उस दिन के बाद से जब भी वह किसी को बातें करते हुए देखता तो सोचता कि अवश्य ही वे उसकी बुराई कर रहे हैं। प्रशंसा करने पर भी वह उसे अपना मजाक लगता इस सोच के दिमाग में घर करने के कारण वह बदल गया और उदास रहने लगा।
उसकी पत्नी भी कुछ दिनों में उसके व्यवहार में आए बदलाव को समझ गई। पूछने पर पत्नी को उस व्यक्ति ने पूरी बात बता दी। पत्नी समझ नहीं पा रही थी कि वह अपने पति को कैसे समझाएं। आखिरकार बहुत सोच-विचार के बाद वह उसे गाँव के एक महात्मा के पास लेकर गई।
पूरी घटना का विवरण करने के बाद व्यक्ति ने कहा कि गुरुदेव लोगों की बुरी बातों से मैं आहत हूँ । हर कोई मेरी बुराई ही करता है। मैं चाहता हूँ कि सब कुछ पहले जैसा हो जाए और सब मेरी प्रशंसा करें। व्यक्ति की बात ध्यान से सुनने के बाद महात्मा ने कहा, "बेटा तुम अपनी पत्नी को छोड़ आओ, आज रात तुम्हें मेरे आश्रम में ही रहना होगा।" पत्नी को घर छोड़ने के बाद वह व्यक्ति आश्रम में वापस आ गया।
रात में जब वह सोने गया तो मेढकों के टर्राने की आवाज उसके कानों में पड़ी। आश्रम के पीछे एक तालाब था। मेढकों के टर्राने की आवाज वहीं से आ रही थी। सारी रात कोलाहल के कारण वह ठीक से सो न सका। सुबह उठकर वह महात्मा के पास गया और बोला गुरुदेव मेढकों के कारण मेरी नींद ही नहीं पड़ी। लगता है तालाब में 50-60 हजार मेंढक होंगे। आपको उनसे परेशानी होती होगी मैं ऐसा करता हूं कि कुछ मजदूर लेकर आता हूं और उनको निकाल कर दूर किसी नदी में डाल आता हूं। महात्मा से आज्ञा लेकर वह व्यक्ति तालाब पर मेंढक निकालने लगा। जब तालाब में जाल फेंका गया तो उसमें से मुट्ठी भर मेंढक ही निकले यह देखकर व्यक्ति हैरान हो गया।
उसने महात्मा से पूछा, "गुरुदेव! रात में तो लग रहा था कि तालाब में हजारों मेढक हैं। अब सब कहाँ चले गए। महात्मा बोले, "बेटा, रात में भी मुट्ठी भर मेंढक थे, लेकिन उन्होंने इतना शोर मचाया कि तुम्हें इनकी संख्या हजारों में लगी। ऐसा ही तुम्हारे जीवन में भी है। तुमने कुछ लोगों को अपनी बुराई करते हुए सुना और तुम्हें गलतफहमी हो गई कि पूरा गाँव तुम्हारी बुराई करता है। अब कभी भी कहीं भी अपनी बुराई सुनो तो सोचना कि वे लोग तालाब के मुट्ठी भर मेंढक जितने ही हैं और हाँ चाहे तुम कितने भी अच्छे क्यों ना हो कुछ लोग तो रहेंगे ही जो तुम्हारी बुराई करेंगे। व्यक्ति को महात्मा की बात समझ में आ गई और वह घोर निराशा से बाहर निकल आया।
सीख - हमें कुछ लोगों के व्यवहार को सब का व्यवहार नहीं समझ लेना चाहिए। परिस्थिति चाहे कैसी भी हो उसमें लोगों का व्यवहार चाहे कैसा भी हो हमें सदा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। सकारात्मक सोच से हर प्रकार की समस्या का हल निकल आता है। प्रारंभ में हमें लगता है कि समस्या बहुत बड़ी है, किंतु निराकरण होने के बाद भी समस्या छोटी लगने लगती है। इसलिए समस्या को अपनी सोच में बड़ा बनाने के स्थान पर उसके निराकरण के बारे में सोचना चाहिए।
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