विषय : हिंदी
कक्षा : 8
पाठ्यपुस्तक : मल्हार (NCERT)
पाठ- 6 एक टोकरी भर मिट्टी
NCERT Class 8 Malhaar ( Hindi Book ) 2025 edition
एक टोकरी भर मिट्टी
किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब, अनाथ वृद्धा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का अहाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई। वृद्धा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई ज़माने से वहीं बसी थी। उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धावस्था में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी पूर्वस्थिति की याद आ जाती तो मारे दुख के फूट-फूट कर रोने लगती थी और जब से उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी। उस झोंपड़ी में उसका ऐसा कुछ मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना ही नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्न निष्फल हुए, तब वे अपनी जमींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत से उस झोंपड़ी पर अपना कब्जा कर लिया और वृद्धा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।
एक दिन श्रीमान् उस झोंपड़ी के आस-पास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि इतने में वह वृद्धा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची। श्रीमान् ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहाँ से हटा दो। पर वह गिड़गिड़ाकर बोली, "महाराज, अब तो झोंपड़ी तुम्हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है।" जमींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, "जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से भेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत कुछ समझाया, पर वह एक नहीं मानती। वही कहा करती है कि अपने घर चल, वहीं रोटी खाऊँगी। अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले जाऊँ!" श्रीमान् ने आज्ञा दे दी।
वृद्धा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे पुरानी बातों का स्मरण हुआ और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अपने आंतरिक दुख को किसी तरह सँभाल कर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और हाथ से उठाकर बाहर ले आई। फिर हाथ जोड़कर श्रीमान् से प्रार्थना करने लगी कि, "महाराज, कृपा करके इस टोकरी को जरा हाथ लगाइए जिससे कि मैं उसे अपने सिर पर घर लूँ।" ज़मींदार साहब पहले तो बहुत नाराज हुए। पर जब वह बार-बार हाथ जोड़ने लगी और पैरों पर गिरने लगी तो उनके भी मन में कुछ दया आ गई। किसी नौकर से न कहकर आप ही स्वयं टोकरी उठाने को आगे बढ़े। ज्यों ही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे त्यों ही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। फिर तो उन्होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्थान पर टोकरी रखी थी, वहाँ से वह एक हाथ भी ऊँची न हुई। वह लज्जित होकर कहने लगे कि, "नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।"
यह सुनकर वृद्धा ने कहा, "महाराज, नाराज न हों... आपसे तो एक टोकरी भर मिट्टी उठाई नहीं जाती और इस झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है। उसका भार आप जन्म-भर कैसे उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।"
जमींदार साहब धन-मद से गर्वित हो अपना कर्तव्य भूल गए थे पर वद्धा सुनते ही उनकी आँखें खुल गईं। कृतकर्म का पश्चाताप उसकी झोंपड़ी वापस दे दी। के उपर्युक्त वचन कर उन्होंने वृद्धा से क्षमा माँगी और उसकी झोंपड़ी वापस दे दी।
माधवराव सप्रे
लेखक से परिचय
हिंदी की प्रारंभिक कहानियों में एक टोकरी भर मिट्टी' का भी उल्लेख आता है। इसके लेखक माधवराव सप्रे हैं। ऐसा माना जाता है कि ये लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की (1871-1926) प्रेरणा से हिंदी में आए थे। इनकी मातृभाषा मराठी थी। इनका जन्म दमोह (मध्य प्रदेश) में हुआ था। इन्होंने लोकमान्य तिलक के चर्चित ग्रंथ गीता-रहस्य का मराठी से हिंदी में अनुवाद किया था। स्वदेशी आंदोलन और बायकॉट इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
'एक टोकरी भर मिट्टी' जैसी कहानियाँ केवल घटनाएँ नहीं सुनातीं, बल्कि मिट्टी से उठते हुए उन प्रश्नों को उठाती है जो हमारे सामाजिक ताने-बाने में गाँठ बनकर अटके हैं।
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