हिंदी कविता
अपराजिता
सारी दुनिया से लड़ने की ज़िद रखने वाली
क्यों खुद के परिवार से नहीं जीत पाती हैं..
हर तरीके से बेहतर होने पर भी
क्यों बार - बार नकार दी जाती है।
सोचा है कभी..
गर नहीं सोचा तो फुर्सत के क्षण
निकाल कर कभी सोचना
बेटियां ....पराया धन,बोझ हैं यह कहने के पहले
थोड़ा बेटों की भी नियत को टटोलना....
बेटे बड़े होकर श्रवण कुमार ही बनेंगे ..
इस सोच से जब पूरी तरह आश्वस्त रहना
फिर बेटियां पराया धन और बोझ होती हैं..
यह केवल बेटियों से ही नहीं
पूरी दुनियां को डंके की चोट पर कहना
क्यों खुद के परिवार से नहीं जीत पाती हैं..
सोचा है कभी..
सोचो एक स्त्री की नजर से..
अपने सपनों,हौसलों और उम्मीदों से ना हारने वाली
क्यों परिवार से हार जाती हैं..
स्त्री के संवेदनशीलता का भले ही कोई कारण ना हो
किन्तु उसकी कठोरता के लिए
एक ही कारण पर्याप्त होता है....
जब सब कुछ उसका होकर भी
जो ना उसको प्राप्त होता है....
संपति का अधिकार .............
अरे यह तो वह बिल्कुल भी नहीं मांगती
यह जो तुम्हारी सोच (पुरुषवादी)हैं
इसे वह बख़ूबी पहचानती ।
अधिकार .... मान,सम्मान, आदर और दुलार का
हो इतने अमीर तो खुशी - खुशी दे देना ....
वह तो अपराजिता हैं..
किन्तु तुम्हे हारा हुआ नहीं देख पाती हैं
तभी तो दुनियां से भी लड़कर
वह बार - बार तुमसे हार जाती है।
वह बार - बार तुमसे हार जाती है।
लेखिका
SUNITA KUMARI
SHAW ASSISTANT PROFESSOR
DARJEELING GOVERNMENT COLLEGE
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बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंAapka aabhar
हटाएंअति सुंदर
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