कक्षा - 4
विषय: हिंदी
पुस्तक का नाम: मिठास
पाठ संख्या: 10
पाठ का नाम - जैसलमेर की यात्रा
पाठ - 10 जैसलमेर की यात्रा
आशिमा अपने माता-पिता के साथ जैसलमेर घूमकर वापस आई है। वह वहाँ की यात्रा (uip) के बारे में बताने के लिए अपने दादाजी को पत्र लिख रही है।
मुंबई
8 अक्टूबर 2024
आदरणीय दादाजी,
सादर प्रणाम।
आशा करती हूँ कि आप सब ठीक होंगे। हम सब भी ठीक हैं। दादाजी, हम जैसलमेर गए थे। यह राजस्थान का एक सुंदर शहर है। यहाँ हम खूब घूमे। आपको पता है, इस शहर के भवन (buildings) पीले बलुआ पत्थर (yellow sandstone) से बने हैं। इसलिए 'सुनहरा' दिखनेवाले जैसलमेर को 'गोल्डन सिटी' कहा जाता है।
सबसे पहले हम जैसलमेर का किला (fort) देखने गए। धूप में तो यह किला सोने की तरह चमकता है। इसलिए, इसे 'स्वर्ण दुर्ग' भी कहते हैं। भारत का यह अकेला जीवित किला (living fort) है, जिसमें लोग रहते हैं। इसमें मकान, दुकानें और मंदिर भी हैं।
माँ ने यहाँ से आपके लिए एक राजस्थानी टोपी और दादीजी के लिए यहाँ की प्रसिद्ध (famous) मिठाई 'घोटुआ' खरीदी।
जैसलमेर में एक पटवों की हवेली भी है। यह पाँच हवेलियों का समूह है। इसे पटवा नाम के एक व्यापारी परिवार ने बनवाया था। इस हवेली की दीवारों पर शीशे का काम है। शीशे के काम से सजी ये दीवारें बहुत सुंदर लग रही थीं।
फिर हम पहुँचे गढ़ीसर झील। इस झील तक पहुँचने के लिए जिस द्वार से अंदर जाते हैं, उसी को 'टीलों की पोल' कहते हैं। कुछ देर झील के आसपास के नजारे का आनंद लेने के बाद हमसब ने नाव से सैर की।
शाम को रेत के टीलों पर जीप सफारी और ऊँट की सवारी करते हुए लगा, जैसे यह कोई सुंदर सपना हो। यहाँ से सूर्यास्त के नजारे ने तो जैसे हम पर जादू कर दिया।
हमने राजस्थान का पारंपरिक खाना 'दाल बाटी चूरमा' खाया। साथ ही घूमर नृत्य देखा। रात को हमने कैम्पिंग का मजा भी लिया। मैं इन जगहों की कुछ तसवीरें भेज रही हूँ।
आपकी प्यारी पोती,
आशिमा
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