कक्षा - 3
विषय: हिंदी
पुस्तक का नाम: अनुभूति
पाठ संख्या: 14
पाठ का नाम - सूर्य या वायु
घमंड करना बुरी बात है। जब कभी भी घमंड टूटता है, हमें दूसरों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है।
एक बार वायु को अपनी ताकत पर घमंड हो गया। उसने सूर्य से कहा, "सूर्यदेव! मेरा ख्याल है कि मैं आपसे भी ज्यादा शक्तिशाली हूँ। जब मैं क्रोधित होकर चलती हूँ तो हरे-भरे वृक्षों को भी उखाड़ देती हूँ, झोंपड़ों को तो मैं तिनके की तरह उड़ा ले जाती हूँ।"
सूर्य बोला, "तुम शक्तिशाली हो. इसमें शक नहीं। किंतु मुझसे शक्तिशाली नहीं हो सकतीं।"
इस बात पर दोनों में बहस होने लगी। घूमते-घूमते नारदजी वहाँ पहुँचे और सूर्य ने उन्हें सारी बात बताई।
तभी नारदजी की नजर एक व्यक्ति पर पड़ी जो चादर लपेटे जा रहा था। नारदजी बोले, "अभी फैसला हो जाएगा। तुम दोनों में से जो उस आदमी के शरीर से पाँच घड़ी में चादर उतार देगा, वही शक्तिशाली होगा। वायु। पहले तुम प्रयास करो।"
वायु को तो आदेश मिलने की देर थी। सूर्य भी तत्काल एक बादल की ओट में छिप गया। वायु अपने पूरे वेग और शक्ति से बहने लगी। आदमी के कंधे से चादर उड़ने लगी। मगर उसने उसे कसकर पकड़ लिया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया।
वायु बार-बार प्रयास करती. मगर चादर न उतार सकी और पाँच घड़ी समाप्त हो गईं।
अब सूर्य की बारी आई। उसने अपना तेज बढ़ा दिया। फिर थोड़ा और बढ़ाया। बस फिर क्या था। उस आदमी को भयंकर गरमी लगने लगी। उसने चादर तो क्या अपना कुरता भी उतार दिया। ये काम सूर्य ने मात्र दो घड़ी में कर दिखाया।
"मेरा ख़याल है आपका फैसला हो गया", नारदजी ने कहा।
"हे सूर्यदेव! मुझे क्षमा करें। मैं झूठा घमंड पाले जा रही थी". वायु ने शर्मिंदा होकर कहा। सूर्यदेव ने उसे क्षमा कर दिया।
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